Ved Anandam

असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्माऽमृतङ्गमय।

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 *असतो मा सद्गमय,* *तमसो मा ज्योतिर्गमय,* *मृत्योर्माऽमृतङ्गमय।*

Ved Anandam

12 नव॰ 20232 मिनट पठन

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

*असतो मा सद्गमय,*

*तमसो मा ज्योतिर्गमय,*

*मृत्योर्माऽमृतङ्गमय।*

( बृहदारण्यक उपनिषद् , १/३/२८)*

…………………………………..

*तमसो मा ज्योतिर्गमय🪔 — स्वयं दिपावली अन्धकार से प्रकाश की ओर गति हैं जिसके लिए दीप जलाते है।*

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

……………………………………

दिपावली के एक दिन पूर्व यम-चतुर्दशी होती है।१४ भुवन अर्थात् जीव सर्ग है, उनकी परिणति यह है, अत: कृष्ण चतुर्दशी को यम – चतुर्दशी कहते हैं, रात्रि तिथी के अनुसार यह शिवरात्रि भी होती है।

दीपावली के एक दिन पश्चात अन्न-कूट होता है …जो पहले इंद्र की पुजा थी (भागवत पुराण)। भगवान कृष्ण ने उसके स्थान पर गोवर्धन पूजा की थी। गोकुल में इस नाम का पर्वत है। गो- वर्धन का अर्थ गोवंश की वृद्धी है जो हमारे यज्ञो का आधार हैं। शरीर की इंद्रिया भी गो हैं,जिनकी वृद्धी रात्री में होती है,जब हम सोते है। अत: एक दिन पूर्व से एक दिन पश्चात का पर्व मृत्यू से अमृत की ओर की गति है…..*असतो मा सद्गमय ।*

श्री सूक्त में निर्ऋति या अलक्ष्मी दूर करने का वर्णन है–

*क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मी नाशयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात।।८।।*

*गन्धवद्वारां दुराधर्षां नित्य पुष्टां करीषणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्।।९।।*

अभूति, निर्णुद = यम , मृत्यू ,अलक्ष्मी, असमृद्धि … क्षुत-पिपासा = दरिद्रता, धनहिनता, भूख ।

श्री – सूक्त पाठ का फल वही है जो दीपावली का फल है।

……………………………………

⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡

❄️❄️❄️❄️❄️❄️

*दीपावली में आतिशबाजी*

हर दीपावली में फटाके नहीं जलाने का उपदेश मिलता है तथा प्रचार किया जाता है की भारत मे पटाखा नहीं होता था।

परंतु इसके प्रयोग का पुराणों में उल्लेख है। इसे उल्का भी कहते थे। उल्का तो आकाश से गिरती है पर हाथ की उल्का को पटाखा कहते हैं। पटाखा ध्वनि – अनुकरण के अनुसार बना शब्द हैं। कृत्रिम उल्का के पर्यायवाची शब्द हैं — अंगार, अलात‌, उल्मुक।

आतिशबाजी मे जो चक्र चलता है, उसे अलात-चक्र कहते थे। माण्डूक्य उपनिषद् की एक व्याख्या का नाम अलात शान्ति है, अर्थात एक बिंदू की गति से चक्र का आभास । स्कंद तथा पद्म पुराण में दीपावली उत्सव का वर्णन है। असुर राजा बलि इसी दिन पाताल गये थे और मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम वनवास से अपने राज्य लौटे थे, उसी उपलक्ष्य में दीपावली उत्सव मनाया जाता है। संध्याकाळ में स्त्रियों द्वारा लक्ष्मी पूजा के पश्चात दीप जलाते है तथा उल्का (आतिशबाजी) करनी चाहिए। उल्का तारागण के प्रकाश का प्रतीक है। आधी रात को जब लोग सो जाए तब तीव्र ध्वनि होनी चाहिए (पटाखा) जिससे अलक्ष्मी भाग जाए। विस्फोटक को बाण कहते थे और इनकी उपाधी ओडिशा मे बाणुआ तथा महाबाणुआ है।

……………………………………

*त्वं ज्योति: श्री रविश्चंद्रो विद्युत्सौवर्ण तारक: ।*

*सर्वेशां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योति: स्थिता तु या*।।२३।।

(पद्म पुराण)

इस श्लोक मे विद्युत-सौवर्ण-तारक का उल्लेख है,जो छोटे छोटे विद्युत बल्बओं की लडी है। इसी प्रकार भगवान राम के युवराज अभिषेक के समय भी सज्जा के लिये प्रकाश तारको की लडी लगी थी,जिसे दीप वृक्ष कहा गया है।

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

*विद्युत उत्पादन के लिये बैटरी का वर्णन अगस्त्य संहिता के एक संस्करण में है।*

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

तथापि हम कहते फिरते हैं की अंग्रेजो ने विद्युत निर्माण की और बहुत सारे संशोधन किये तो यह सब मिथ्या है।क्योंकी उन्होंने हमारे ग्रंथो से ही सारा ज्ञान प्राप्त किया और अपने नाम पर पेटेंट कारवाया।

इसीलिए हमारे शास्त्र और ग्रंथ पढने पर हमें हमारी सनातन संस्कृती पर अभिमान लगने लगेगा और यह धर्म कितना महान है इसकी जानकारी होगी।

…………………………………..

*शुभ दीपावली*

*आप सभी को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं*

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

वेद आनंदम् परिवार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *