वेद आनंदम्

धर्म

संसार का हर इंसान भटक रहा है।

नये नये धर्मो के निर्माण और ,

मैं ही श्रेष्ठ की दौड में ,

सही विचारों को कुचल रहा है।

धर्म क्या है ?

कौन है इसका रचयिता ,

सारा ही भ्रम निर्माण हुआ पडा है।

धर्म के झगडे मे सभी खडे अव्वल है।

लेकिन धर्म छोडा गर वैदिक ,

सारे ही पथदर्शक पंथ है।

धृति क्षमा दमोस्तेयं शौच इंद्रियनिग्रह: ।

धीर्विध्या सत्यं अक्रोधो दसक धर्म लक्षणम।।

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