लक्ष्मी पूजा विधि

दिपावली के दौरान षोडशोपचार लक्ष्मी पूजा

लक्ष्मी पूजा विधि

हम दीवाली के दौरान लक्ष्मी पूजा विधि को विस्तृत रूप से उपलब्ध करा रहे हैं। दीवाली पूजा के लिये लोगों को महा-लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा खरीदनी चाहिये। यह पूजा विधि श्री लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा या मूर्ति के लिये प्रदान की गयी है। इस पूजा विधि में लक्ष्मीजी की पूजा करने के लिये सोलह चरण सम्मिलित हैं, इसीलिये यह षोडशोपचार पूजा के नाम से प्रसिद्ध है।

  1. ध्यानम्
    भगवती लक्ष्मी का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित श्रीलक्ष्मी की नवीन प्रतिमा में करें।

दिपावली में श्री लक्ष्मी पूजा-
श्री लक्ष्मी ध्यान मन्त्र-

या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि-तटी पद्म-पत्रायताक्षी।
गम्भीरार्तव-नाभिः स्तन-भर-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया॥
या लक्ष्मीर्दिव्य-रूपैर्मणि-गण-खचितैः स्वापिता हेम-कुम्भैः।
सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्व-माङ्गल्य-युक्ता॥
मन्त्र का अर्थ – भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पँखुड़ियों के समान सुन्दर बड़े-बड़े जिनके नेत्र हैं, जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्तवाली नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुयी तथा सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि-जटित दिव्य स्वर्ण-कलशों के द्वारा स्नान किये हुये हैं, वे कमल-हस्ता सदा सभी मङ्गलों के सहित मेरे घर में निवास करें।

  1. आवाहनम्
    श्रीभगवती लक्ष्मी का ध्यान करने के उपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा प्रदर्शित करते हुये उनका आवाहन करें।
    श्री लक्ष्मी आवाहन मन्त्र
    आगच्छ देवि देवेशि! तेजोमयि महा-लक्ष्मि!
    क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुरवन्दिते!
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देवीम् आवाहयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – हे देवताओं की ईश्वरि! तेज-मयी हे महा-देवि लक्ष्मि! देव-वन्दिते! आइये, मेरे द्वारा की जाने वाली पूजा को स्वीकार करें।
    ॥ मैं भगवती श्रीलक्ष्मी का आवाहन करता हूँ ॥
  2. पुष्पाञ्जलि-आसनम्
    आवाहन करने के उपरान्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करके देवी के आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।
    श्री लक्ष्मी पुष्पाञ्जलि मन्त्र
    नाना-रत्न-समायुक्तं कार्त-स्वर-विभूषितम्।
    आसनं देवि देवेशि! प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै आसनार्थे पञ्च-पुष्पाणि समर्पयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – हे देवताओं की ईश्वरि! विविध प्रकार के रत्नों से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के आसन के लिये मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ ॥
  3. स्वागतम्
    पुष्पाञ्जलि-रूप आसन प्रदान करने के उपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये हाथ जोड़कर देवी श्रीलक्ष्मी का स्वागत करें।
    श्री लक्ष्मी स्वागत मन्त्र
    श्रीलक्ष्मी-देवि! स्वागतम्।
    मन्त्र का अर्थ – हे देवी, लक्ष्मि! आपका स्वागत है।
  4. पाद्यम्
    स्वागत करने के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी पाद्य मन्त्र
    पाद्यं गृहाण देवेशि सर्व-क्षेम-समर्थे भोः!
    भक्त्या समर्पितं देवि महालक्ष्मि! नमोऽस्तु ते॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः पाद्यं समर्पयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – सभी प्रकार के कल्याण करने में समर्थ हे देवेश्वरि! चरण धोने का जल भक्ति-पूर्वक समर्पित है, स्वीकार करें। हे महा-देवि, लक्ष्मि! आपको नमस्कार है।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी को चरण धोने के लिये यह जल है – उन्हें नमस्कार ॥
  5. अर्घ्यम्
    पाद्य समर्पण के उपरान्त उन्हें अर्घ्य (शिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी अर्घ्य मन्त्र
    नमस्ते देवि देवेशि! नमस्ते कमल-धारिणि!
    गृहाणार्घ्यं मया दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।
    गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं फल-द्रव्य-समन्वितम्।
    गृहाण तोयमर्घ्यर्थं परमेश्वरि वत्सले!
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः अर्घ्यं समर्पयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – हे श्रीलक्ष्मी आपको नमस्कार। हे कमल को धारण करनेवाली देव-देवेश्वरि! आपको नमस्कार। हे धनदा देवि, श्रीलक्ष्मी आपको नमस्कार। शिर के अभिषेक के लिये यह जल (अर्घ्य) स्वीकार करें। हे कृपा-मयि परमेश्वरि! चन्दन-पुष्प-अक्षत से युक्त, फल और द्रव्य के सहित यह जल शिर के अभिषेक के लिये स्वीकार करें।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये अर्घ्य समर्पित है ॥
  6. स्नानम्
    अर्घ्य के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को जल से स्नान करायें।
    श्री लक्ष्मी स्नान मन्त्र
    गङ्गासरस्वतीरेवापयोष्णीनर्मदाजलैः।
    स्नापितासि मया देवि तथा शान्तिं कुरुष्व मे॥
    आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
    तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः!
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः जलस्नानं समर्पयामि ॥
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के स्नान के लिये जल समर्पित है ॥
  7. पञ्चामृत-स्नानम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को पञ्चामृत से स्नान करायें।
    श्री लक्ष्मी पञ्चामृत स्नान मन्त्र
    दधि मधु घृतञ्चैव पयश्च शर्करायुतम्।
    पञ्चामृतं समानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
    ॐ पञ्चनद्यः सरस्वतीमपियन्ति सस्रोतसः।
    सरस्वती तु पञ्चधा सोदेशे भवत् सरित्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ॥
  8. गन्ध-स्नानम्
    तदुपरान्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को गन्ध मिश्रित जल से स्नान करायें।
    श्री लक्ष्मी गन्ध स्नान मन्त्र
    ॐ मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम्।
    चन्दनं देवि देवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः गन्धस्नानं समर्पयामि ॥
  9. शुद्ध-स्नानम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान करायें।
    श्री लक्ष्मी शुद्ध स्नान मन्त्र
    मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।
    तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ॥
  10. वस्त्रम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को मोली के रूप में वस्त्र समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी वस्त्र मन्त्र
    दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम्।
    दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके॥
    उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
    प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि ॥
  11. मधुपर्कम्
    श्री लक्ष्मी को दूध व शहद का मिश्रण अर्थात् मधुपर्क अर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी मधुपर्क मन्त्र
    ॐ कापिलं दधि कुन्देन्दुधवलं मधुसंयुतम्।
    स्वर्णपात्रस्थितं देवि मधुपर्कं गृहाण भोः॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः मधुपर्कं समर्पयामि ॥
  12. आभूषणम्
    मधुपर्क के उपरान्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये आभूषण अर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी आभूषण मन्त्र
    रत्नकङ्कण-वैदूर्यमुक्ताहारयुतानि च।
    सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व मे॥
    क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
    अभूतिमसमृद्धिं च सर्वान्निर्णुद मे गृहात्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः आभूषणानि समर्पयामि ॥
  13. रक्तचन्दनम्
    आभूषण अर्पण के उपरान्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को लाल चन्दन अर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी रक्तचन्दन मन्त्र
    ॐ रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम्।
    मया दत्तं गृहाणाशु चन्दनं गन्धसंयुतम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः आभूषणानि समर्पयामि ॥
  14. सिन्दूरम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को तिलक के लिये सिन्दूर अर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी सिन्दुर मन्त्र
    ॐ सिन्दूरं रक्तवर्णञ्च सिन्दूरतिलकप्रिये।
    भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः सिन्दूरं समर्पयामि ॥
  15. कुङ्कुमम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को अखण्ड सौभाग्य रूपी कुङ्कुम अर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी कुङ्कुम स्नान मन्त्र
    ॐ कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कुङ्कुमं कामरूपिणम्।
    अखण्डकामसौभाग्यं कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः कुङ्कुमं समर्पयामि ॥
  16. अबीर-गुलालम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को अबीरगुलाल अर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी-अबीर गुलाल मन्त्र
    अबीरञ्च गुलालं च चोवा-चन्दनमेव च।
    श्रृङ्गारार्थं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः अबीरगुलालं समर्पयामि ॥
  17. सुगन्धित-द्रव्यम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को सुगन्धित द्रव्य अर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी सुगन्धित द्रव्य मन्त्र
    ॐ तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च।
    मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः सुगन्धिततैलं समर्पयामि ॥
  18. अक्षताः
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को अक्षत अर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी अक्षत मन्त्र
    अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः।
    मया निवेदिता भक्त्या पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः अक्षतान् समर्पयामि ॥
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये अक्षत समर्पित करता हूँ ॥
  19. गन्ध-समर्पणम्/चन्दन-समर्पणम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को चन्दन समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी गन्ध समर्पण मन्त्र
    श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
    विलेपनं महालक्ष्मि! चन्दनं प्रति-गृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः चन्दनं समर्पयामि ॥
    हिन्दी में अर्थ – हे महा-लक्ष्मि! मनोहर और सुगन्धित चन्दन शरीर में लगाने हेतु ग्रहण करें।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ ॥
  20. पुष्प-समर्पणम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी पुष्प समर्पण मन्त्र
    यथाप्राप्त-ऋतुपुष्पैः बिल्व-तुलसी-दलैरपि।
    पूजयामि महा-लक्ष्मि! प्रसीद मे सुरेश्वरि!
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः पुष्पं समर्पयामि ॥
    हिन्दी में अर्थ – अर्थात् – हे महा-लक्ष्मि! ऋतु के अनुसार प्राप्त पुष्पों और विल्व तथा तुलसी-दलों से मैं आपकी पूजा करता हूँ।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये पुष्प समर्पित करता हूँ ॥
  21. अङ्ग-पूजनम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये भगवती लक्ष्मी के अङ्ग-देवताओं का पूजन करना चाहिये। बायें हाथ में चावल, पुष्प व चन्दन लेकर प्रत्येक मन्त्र का उच्चारण करते हुये दाहिने हाथ से श्री लक्ष्मी की मूर्ति के पास छोड़ें।
    श्री लक्ष्मी अङ्ग पूजन मन्त्र
    ॐ चपलायै नमः पादौ पूजयामि।
    ॐ चञ्चलायै नमः जानुनी पूजयामि।
    ॐ कमलायै नमः कटिं पूजयामि।
    ॐ कात्यायन्यै नमः नाभिं पूजयामि।
    ॐ जगन्मात्रे नमः जठरं पूजयामि।
    ॐ विश्व-वल्लभायै नमः वक्ष-स्थलं पूजयामि।
    ॐ कमल-वासिन्यै नमः हस्तौ पूजयामि।
    ॐ कमल-पत्राक्ष्यै नमः नेत्र-त्रयं पूजयामि।
    ॐ श्रियै नमः शिरः पूजयामि।
  22. अष्ट-सिद्धि पूजा
    अङ्ग-देवताओं की पूजा करने के उपरान्त पुनः बायें हाथ में चन्दन, पुष्प व चावल लेकर दायें हाथ से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के समीप ही अष्ट-सिद्धियों की पूजा करें।
    श्री लक्ष्मी अष्ट सिद्धि मन्त्र
    ॐ अणिम्ने नमः। ॐ महिम्ने नमः।
    ॐ गरिम्णे नमः। ॐ लघिम्ने नमः।
    ॐ प्राप्त्यै नमः। ॐ प्राकाम्यै नमः।
    ॐ ईशितायै नमः। ॐ वशितायै नमः।
  23. अष्ट-लक्ष्मी पूजा
    अष्ट-सिद्धियों की पूजा के उपरान्त उपर्युक्त विधि से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के समीप ही अष्ट-लक्ष्मियों की पूजा चावल, चन्दन तथा पुष्प से करें।
    श्री अष्ट लक्ष्मी मन्त्र
    ॐ आद्य-लक्ष्म्यै नमः। ॐ विद्या-लक्ष्म्यै नमः।
    ॐ सौभाग्य-लक्ष्म्यै नमः। ॐ अमृत-लक्ष्म्यै नमः।
    ॐ कमलाक्ष्यै नमः। ॐ सत्य-लक्ष्म्यै नमः।
    ॐ भोग-लक्ष्म्यै नमः। ॐ योग-लक्ष्म्यै नमः।
  24. धूप-समर्पणम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी धूप समर्पण मन्त्र
    वनस्पति-रसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः।
    आघ्रेयः सर्व-देवानां, धूपोऽयं प्रति-गृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः धूपं समर्पयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – वृक्षों के रस से निर्मित, सुन्दर, मनोहर, सुगन्धित और सभी देवताओं के सूँघने के योग्य यह धूप आप ग्रहण करें।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं धूप समर्पित करता हूँ ॥
  25. दीप-समर्पणम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को दीप समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी दीप समर्पण मन्त्र
    साज्यं त्रिवर्ति-संयुक्तं वह्निना योजितं मया,
    दीपं गृहाण देवेशि! त्रैलोक्य-तिमिरापहम्।
    भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देव्यै परमात्मने।
    त्राहि मां नरकात् घोरात् दीपोऽयं प्रति-गृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः दीपं समर्पयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – हे देवेश्वरि! घी के सहित और बत्ती से मेरे द्वारा जलाया हुआ, तीनों लोकों के अँधेरे को दूर करने वाला दीपक स्वीकार करें। मैं भक्ति-पूर्वक परात्परा श्रीलक्ष्मी-देवी को दीपक प्रदान करता हूँ। इस दीपक को स्वीकार करें और घोर नरक से मेरी रक्षा करें।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं दीपक समर्पित करता हूँ ॥
  26. नैवेद्य-समर्पणम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को नैवेद्य समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी नैवेद्य समर्पण मन्त्र
    शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च।
    आहारो भक्ष्य-भोज्यं च नैवेद्यं प्रति-गृह्यताम्।
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः यथांशतः श्रीलक्ष्मी-देव्यै नैवेद्यं समर्पयामि –
    ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा।
    ॐ समानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा।
    ॐ व्यानाय स्वाहा ॥
    मन्त्र का अर्थ – शर्करा-खण्ड (बताशा आदि), खाद्य पदार्थ, दही, दूध और घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें।
    ॥ यथा-योग्य रूप भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं नैवेद्य समर्पित करता हूँ – प्राण के लिये, अपान के लिये, समान के लिये, उदान के लिये और व्यान के लिये स्वीकार हो ॥
  27. आचमन-समर्पणम्/जल-समर्पणम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये आचमन के लिये श्रीलक्ष्मी को जल समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी आचमन मन्त्र
    ततः पानीयं समर्पयामि इति उत्तरापोषणम्।
    हस्त-प्रक्षालनं समर्पयामि। मुख-प्रक्षालनं।
    करोद्वर्तनार्थे चन्दनं समर्पयामि।
    मन्त्र का अर्थ – नैवेद्य के पश्चात् मैं पीने और आचमन (उत्तरा-पोशन) के लिये, हाथ धोने के लिये, मुख धोने के लिये जल और हाथों में लगाने के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ।
  28. ताम्बूल-समर्पणम्
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को ताम्बूल (पान, सुपारी सहित) समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी ताम्बूल समर्पण मन्त्र
    पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्ली-दलैर्युतम्।
    कर्पूरैला-समायुक्तं ताम्बूलं प्रति-गृह्यताम्॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः मुख-वासार्थं पूगी-फलयुक्तं ताम्बूलं समर्पयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – पान के पत्तों से युक्त अत्यन्त सुन्दर सुपारी, कपूर और इलायची से प्रस्तुत ताम्बूल आप स्वीकार करें।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपारी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ ॥
  29. दक्षिणा
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को दक्षिणा समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी दक्षिणा मन्त्र
    हिरण्य-गर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
    अनन्तपुण्य-फलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः सुवर्णपुष्प-दक्षिणां समर्पयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – असीम पुण्य प्रदान करने वाली स्वर्ण-गर्भित चम्पक पुष्प से मुझे शान्ति प्रदान करिये।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं स्वर्ण-पुष्प-रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ ॥
  30. प्रदक्षिणा
    अब श्रीलक्ष्मी की प्रदक्षिणा (बायें से दायें ओर की परिक्रमा) सहित निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को फूल समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी प्रदक्षिणा मन्त्र
    यानि कानि च पापानि जन्मान्तर-कृतानि च।
    तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणां पदे पदे॥
    अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।
    तस्मात् कारुण्य-भावेन, क्षमस्व परमेश्वरि॥
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं। हे देवि! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं हैं, तुम्हीं शरण-दात्री हो। अतः हे परमेश्वरि! दया-भाव से मुझे क्षमा करो।
    ॥ भगवती श्री लक्ष्मी को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ ॥
  31. वन्दना-सहित पुष्पाञ्जलिः
    तदुपरान्त वन्दना करें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
    श्री लक्ष्मी वन्दना मन्त्र
    करकृतं वा कायजं कर्मजं वा,
    श्रवण-नयनजं वा मानसं वाऽपराधम्।
    विदितमविदितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व,
    जय जय करुणाब्धे, श्रीमहा-लक्ष्मि त्राहि।
    ॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै नमः मन्त्र-पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ॥
    मन्त्र का अर्थ – हे दया-सागर, श्रीलक्ष्मि! हाथों-पैरों द्वारा किये हुये या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात मेरे अपराध हों, उन सबको आप क्षमा करें। आपकी जय हो, जय हो। मेरी रक्षा करें।
    ॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं मन्त्र-पुष्पांजलि समर्पित करता हूँ ॥
  32. साष्टाङ्ग-प्रणामः
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये श्रीलक्ष्मी को साष्टाङ्ग प्रणाम अर्थात् आठ अङ्गों के सहित प्रणाम कर नमस्कार करें।
    श्री लक्ष्मी साष्टाङ्ग प्रणाम मन्त्र
    ॐ भवानि! त्वं महा-लक्ष्मीः सर्व-काम-प्रदायिनी।
    प्रसन्ना सन्तुष्टा भव देवि! लक्ष्म्यै नमोऽस्तु ते।
    ॥ अनेन पूजनेन श्रीलक्ष्मी देवी प्रीयतां नमो नमः॥
    मन्त्र का अर्थ – हे भवानी! आप सभी कामनाओं को देने वाली महा-लक्ष्मी हैं। हे देवि! आप प्रसन्न और सन्तुष्ट हों। आपको नमस्कार।
    ॥ इस पूजन से श्रीलक्ष्मी देवी प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार ॥
  33. क्षमा-प्रार्थना
    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये पूजा के समय हुयी किसी भी प्रकार की ज्ञात-अज्ञात त्रुटि के लिये श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें।
    श्री लक्ष्मी क्षमा प्रार्थना मन्त्र

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्॥
पूजा-कर्म न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्ति-हीनं सुरेश्वरि!
मया यत्पूजितं देवि! परिपूर्णं तदस्तु मे॥
अनेन यथा-मिलितोपचार-द्रव्यैः कृत-पूजनेन श्रीलक्ष्मी-देवी प्रीयताम्
॥ श्रीलक्ष्मी-देव्यै अर्पणमस्तु ॥
मन्त्र का अर्थ – न मैं आवाहन करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो।
यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।

॥ भगवती श्रीलक्ष्मी को यह समस्त पूजन समर्पित है ॥